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शुचि॑र्दे॒वेष्वर्पि॑ता॒ होत्रा॑ म॒रुत्सु॒ भार॑ती। इळा॒ सर॑स्वती म॒ही ब॒र्हिः सी॑दन्तु य॒ज्ञिया॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śucir deveṣv arpitā hotrā marutsu bhāratī | iḻā sarasvatī mahī barhiḥ sīdantu yajñiyāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शुचिः॑। दे॒वेषु॑। अर्पि॑ता। होत्रा॑। म॒रुत्ऽसु॑। भार॑ती। इळा॑। सर॑स्वती। म॒ही ब॒र्हिः। सी॒द॒न्तु॒। य॒ज्ञियाः॑ ॥ १.१४२.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:142» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (देवेषु) विद्वानों में (अर्पिता) समर्पण की हुई (होत्रा) देने-लेने योग्य क्रिया वा (मरुत्सु) स्तुति करनेवालों में (भारती) धारण-पोषण करनेवाली (शुचिः) पवित्र (इळा) प्रशंसा के योग्य (सरस्वती) प्रशंसित विज्ञान का सम्बन्ध रखनेवाली (मही) और बड़ी (यज्ञियाः) यज्ञ सिद्ध कराने के योग्य क्रिया (बर्हिः) समीप प्राप्त बढ़े हुए व्यवहार को (सीदन्तु) प्राप्त होवे उनको समस्त विद्यार्थी प्राप्त होवें ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्यार्थियों को ऐसी इच्छा करनी चाहिये कि जो विद्वानों में विद्या वा वाणी वर्त्तमान है, वह हमको प्राप्त होवे ॥ ९ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'भारती, इळा, सरस्वती, मही'

पदार्थान्वयभाषाः - १. (शुचिः) = शुद्ध, (देवेषु) = अर्पिता सृष्टि के आरम्भ में 'अग्नि, वायु, आदित्य व अङ्गिरा' नामक देवताओं में स्थापित की गई (होत्रा) = यह वेदवाणी (मरुत्सु) = प्राणसाधक पुरुषों में (भारती) = भरण करनेवाली होती है। वेदवाणी में किसी प्रकार की ग़लती न होने से वह शुद्ध है। प्रभु इसे अग्नि आदि को प्राप्त कराते हैं। प्राणसाधना करनेवाले पुरुष इसके द्वारा पोषित होते हैं। २. ऋग्वेद में इस वाणी का नाम [क] 'भारती' है, क्योंकि यह प्रकृति का ज्ञान देती हुई उचित प्रकार से हमारा भरण करती है, [ख] यही वाणी यजुर्वेद में 'इळा' कहलाती है [इळा-food, the earth] यजुर्वेद में प्रतिपादित यज्ञों के द्वारा यह पृथिवी में अन्नोत्पत्ति का कारण बनती है, [ग] सामवेद में यह 'सरस्वती' है। ब्रह्मा की पत्नी के रूप में यह हमें ब्रह्म का ज्ञान देनेवाली होकर ब्रह्म में यह 'सरस्वती' है। ब्रह्मा की पत्नी के रूप में यह हमें ब्रह्म का ज्ञान देनेवाली होकर ब्रह्म की ओर ले चलती है, [घ] अथर्ववेद में यह वाणी 'मही' हो जाती है— रोगों व युद्धों से बचाकर यह हमारी उन्नति का कारण बनती है[मह to grow, increase]। ३. 'भारती, इळा, सरस्वती, मही' – ये सब वाणियाँ (यज्ञियाः) = संगतिकरण योग्य हैं। ये (बर्हिः सीदन्तु) = हमारे हृदयान्तरिक्ष में निवास करें। इस वेदवाणी के लिए हमारे हृदय में आदर का भाव हो। इसके अध्ययन को हम पवित्र कार्य समझते हुए प्रतिदिन करनेवाले बनें। इसके अध्ययन में हम कभी प्रमाद न करें। अवकाश में इसका अध्ययन और भी अधिक पुण्यमय समझा जाए।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम वेदवाणी को अपनाते हुए अपने जीवन को शुद्ध बनाएँ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

या देवेष्वर्पिता होत्रा मरुत्सु भारती शुचिरिळा सरस्वती मही च यज्ञिया बर्हिः सीदन्तु ताः सर्वे विद्यार्थिनः प्राप्नुवन्तु ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुचिः) पवित्रा (देवेषु) विद्वत्सु (अर्पिता) समर्पिता (होता) दातुमादातुमर्हा (मरुत्सु) स्तावकेषु (भारती) धारणपोषणकर्त्री (इळा) प्रशंसितुं योग्या (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानसम्बधिनी (मही) पूजितुं सत्कर्त्तुमर्हा (बर्हीः) उपगतं वृद्धम् (सीदन्तु) प्राप्नुवन्तु (यज्ञियाः) यज्ञसाधनाऽर्हाः ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्यार्थिभिरेवमाशंसितव्यं या विद्वत्सु विद्या वाणी वर्त्तते साऽस्मान्प्राप्नोतु ॥ ९ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Bright and pure, delivered and entrusted to the divine visionaries and dynamic Maruts, vibrations of universal mind and brilliant teachers, holy media of communication between the divine and human, Bharati, mother speech of the nation for sustenance, Ila, divine articulation of Omniscience, Sarasvati, everflowing Word of the Veda, and Mahi, mother spirit of the earth, all these, we pray, may grace our house of yajna for honour and adoration and for mutual discourse.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Duties of the pupils defined.

अन्वय:

All students should try to achieve that wisdom and speech which is dedicated to the enlightened truthful devotees. It should be pure, acceptable qualitative and should uphold and sustain admirable and adorable true knowledge. May such wisdom and speech which are helpful in the performance of YAJNA, be achieved in all our important dealings.

भावार्थभाषाः - The students should always intensely desire to acquire splendid wisdom and the noble speech like that of the enlightened persons.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्यार्थ्यांनी अशी इच्छा बाळगली पाहिजे, की विद्वानांजवळ असलेली विद्या व वाणी आम्हाला प्राप्त व्हावी. ॥ ९ ॥