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आ भन्द॑माने॒ उपा॑के॒ नक्तो॒षासा॑ सु॒पेश॑सा। य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॒ सीद॑तां ब॒र्हिरा सु॒मत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā bhandamāne upāke naktoṣāsā supeśasā | yahvī ṛtasya mātarā sīdatām barhir ā sumat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। भन्द॑माने॒ इति॑। उपा॑के॒ इति॑। नक्तो॒षसा॑। सु॒ऽपेष॑सा। य॒ह्वी इति॑। ऋ॒तस्य॑। मा॒तरा॑। सीद॑ताम्। ब॒र्हिः। आ। सु॒ऽमत् ॥ १.१४२.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:142» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! आप जैसे (ऋतस्य) सत्य व्यवहार का (मातरा) मान करानेवाली (यह्वी) कारण से उत्पन्न हुई (उपाके) एक दूसरे के साथ वर्त्तमान (सुपेशसा) उत्तम रूपयुक्त और (भन्दमाने) कल्याण करनेवाली (नक्तोषसा) रात्रि और प्रभात वेला (आ, सीदताम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होवें वैसे (आ, सुमत्) जिसमें बहुत आनन्द को प्राप्त होते हैं उस (बर्हिः) उत्तम घर को प्राप्त होओ ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे दिन-रात्रि समस्त प्राणी-अप्राणी को नियम से अपनी-अपनी क्रियाओं में प्रवृत्त कराता है, वैसे सब विद्वानों को सर्वसाधारण मनुष्य उत्तम क्रियाओं में प्रवृत्त करने चाहिये ॥ ७ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिन-रात

पदार्थान्वयभाषाः - १. (नक्तोषासा) = रात और दिन (सुमत्) = स्वयमेव (बर्हिः) = हमारे हृदयों में (आसीदताम्) = आसीन हों । कैसे रात्रि और दिन ? [क] (भन्दमाने) = कल्याण व सुख प्राप्त करानेवाले, [ख] (उपाके) = [उप+अजू] प्रभु के समीप गति करनेवाले, अर्थात् प्रभु की उपासनावाले, [ग] (सुपेशसा) = सदा उत्तम कर्मों का निर्माण करनेवाले, [घ] (यह्वी) = महान् अथवा [यातश्च हूतश्च] प्रभु की ओर जाने व उसे पुकारनेवाले, [ङ] ऋतस्य मातरा यज्ञ व सत्य का निर्माण करनेवाले । २. हमारे हृदयों में सदा यह भावना हो कि ये दिन-रात कल्याण करनेवाले, प्रभु की उपासनवाले, उत्तम कार्यों को करनेवाले, महत्त्वपूर्ण व यज्ञों को सिद्ध करनेवाले हों। ये स्वयं ही ऐसे हों [सुमत्], अर्थात् ऐसे दिन हमारे लिए स्वाभाविक हो जाएँ। हम स्वभावतः ऐसे दिनों को बितानेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे दिन-रात कल्याणकारक कार्यों को करनेवाले व प्रभुपूजन की भावनावाले हों ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मनुष्या भवन्तो यथा ऋतस्य मातरा यह्वी उपाके सुपेशसा भन्दमाने नक्तोषासा आसीदतां तद्वदासुमदबर्हिः प्राप्नुवन्तु ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (भन्दमाने) कल्याणकारके (उपाके) परस्परमसन्निहितवर्त्तमाने (नक्तोषासा) रात्रिदिने (सुपेशसा) सुरूपे। अत्र सर्वत्र विभक्तेराकारादेशः। (यह्वी) कारणसूनू (ऋतस्य) सत्यस्य (मातरा) मानयित्र्यौ (सीदताम्) प्राप्नुतः (बर्हिः) उत्तमं गृहम् (आ) (सुमत्) सुष्ठु माद्यन्ति हृष्यन्ति यस्मिन् तत् ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - यथाऽहोरात्रः सर्वान् प्राण्यप्राणिनो नियमेन स्वस्वक्रियासु प्रवर्त्तयति तथा सर्वैर्विद्वद्भिः सर्वे मनुष्याः सत्क्रियासु प्रवर्त्तनीयाः ॥ ७ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Bright and blissful cyclic sisters, night and day, both beautiful, moving majestic, mothers of love and faith in Truth Divine may, we pray, come and grace our great house rejoicing, and bless our yajna with dignity and devotion.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The learned should exhort common man to make his home life decent.

अन्वय:

O men and women ! you should have a decent home life where you are joyous and have nice accommodation. Like day and night, the learned should preach all to lead truthful and well-knit life in the homes.

भावार्थभाषाः - As day and night urge all beings to do their duties and functions, likewise, the enlightened persons should urge upon all human beings to perform their duties.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे दिवस व रात्र प्राणी आणि अप्राणी यांना नियमाने आपापल्या क्रियेत प्रवृत्त करतात तसे सर्व विद्वानांनी सर्व माणसांना सत्कर्मात प्रवृत्त केले पाहिजे. ॥ ७ ॥