वांछित मन्त्र चुनें

आकीं॒ सूर्य॑स्य रोच॒नाद्विश्वा॑न्दे॒वाँ उ॑ष॒र्बुधः॑। विप्रो॒ होते॒ह व॑क्षति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ākīṁ sūryasya rocanād viśvān devām̐ uṣarbudhaḥ | vipro hoteha vakṣati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आकी॑म्। सूर्य॑स्य। रो॒च॒नात्। विश्वा॑न्। दे॒वान्। उ॒षः॒ऽबुधः॑। विप्रः॑। होता॑। इ॒ह। व॒क्ष॒ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:14» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:9


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

किस प्रकार के मनुष्य उन गुणों को ग्रहण कर सकते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - जो (होता) होम में छोड़ने योग्य वस्तुओं का देने-लेनेवाला (विप्रः) बुद्धिमान् विद्वान् पुरुष है, वही (सूर्य्यस्य) चराचर के आत्मा परमेश्वर वा सूर्य्यलोक के (रोचनात्) प्रकाश से (इह) इस जन्म वा लोक में (उषर्बुधः) प्रातःकाल को प्राप्त होकर सुखों को चितानेवाले (विश्वान्) जो कि समस्त (देवान्) श्रेष्ठ भोगों को (वक्षति) प्राप्त होता वा कराता है, वही सब विद्याओं को प्राप्त होके आनन्दयुक्त होता है॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। यदि ईश्वर इन पदार्थों को उत्पन्न नहीं करता, तो कोई पुरुष उपकार लेने को समर्थ भी नहीं हो सकता, और जब मनुष्य निद्रा में स्थित होते हैं, तब कोई मनुष्य किसी भोग करने योग्य पदार्थ को प्राप्त नहीं हो सकता किन्तु जाग्रत् अवस्था को प्राप्त होकर उनके भोग करने को समर्थ होता है। इससे इस मन्त्र में उषर्बुधः इस पद का उच्चारण किया है। संसार के इन पदार्थों से बुद्धिमान् मनुष्य ही क्रिया की सिद्धि को कर सकता है, अन्य कोई नहीं॥९॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रातः सत्संग

पदार्थान्वयभाषाः - १. (विप्रः) - [वि+प्रा] अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाला (होता) - सदा दानपूर्वक अदन करनेवाला व्यक्ति (इह) - इस जीवन में (सूर्यस्य रोचनात्) - सूर्य के चमकते ही (आकीम्) - [समन्तात् १ । १४ । ९   , द०] सब ओर से (विश्वान्) - सब (उषर्बुधः) - प्रातः काल में जागनेवाले (देवान्) - विद्वानों को (वक्षति) - लाता है  , अर्थात् 'उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरान्निबोधत' उठो  , जागो  , श्रेष्ठों को प्राप्त करके ज्ञान प्राप्त करो' इस उपनिषद् के उपदेश के अनुसार यह अपनी न्यूनताओं को दूर करने की कामनावाला [विप्रः] दानशील [होता] पुरुष सूर्योदय होते ही अपने जीवन में विद्वानों के सम्पर्क का प्रयत्न करता है । उनसे उत्तम ज्ञान का श्रवण करके मननपूर्वक उस ज्ञान को अपने जीवन का अंग बनाकर उन्नत होता है । "उषर्बुधः' शब्द का अर्थ 'प्रातः काल जागनेवाले' तो है ही  , साथ ही इस शब्द की भावना भी स्मरणीय है कि ये विद्वान् इस उषः काल में ज्ञान के प्रचार द्वारा लोगों का उद्बोधन करते हैं । इन प्रातः कालीन सत्संगों का लाभ यही है कि हमारा जीवन सदा सत्प्रेरणा से प्रेरित होकर उत्तम मार्ग पर ही गमन करनेवाला होता है । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - सूर्योदय होते ही उषर्बुध देवों के सम्पर्क में आकर हम ज्ञान प्राप्त करें ।  
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा मनुष्यास्तद्गुणान् ग्रहीतुं योग्या भवन्तीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

यो होता विप्रो विद्वान् सूर्य्यस्य रोचनादिहोषर्बुधो विश्वान् देवान् वक्षति प्राप्नोति स सर्वा विद्याः प्राप्यानन्दी भवति॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आकीम्) समन्तात् (सूर्य्यस्य) चराचरस्यात्मनः परमेश्वरस्य सूर्यलोकस्य वा (रोचनात्) प्रकाशनात् (विश्वान्) सर्वान् (देवान्) दिव्यभोगान् (उषर्बुधः) उषः सम्प्राप्य बोधयन्ति तान् (विप्रः) मेधावी होता हवनस्य दाताऽऽदाता वा (इह) अस्मिन् जन्मनि लोके वा (वक्षति) प्राप्नोति प्रापयति वा। अत्र लडर्थे लेट्॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। यदीश्वर इमान् पदार्थान्नोत्पादयेत् तर्हि कश्चिदपि जन उपकारं ग्रहीतुं कथं शक्नुयात्। यदा मनुष्या निद्रास्था भवन्ति, तदा न किमपि भोक्तव्यं द्रव्यं प्राप्तुमर्हन्ति। किञ्च जागरणं प्राप्य भोगकरणे समर्था भवन्त्येतस्मादुषर्बुध इत्युक्तम्। एतेभ्यः पदार्थेभ्यो धीमान् पुरुष एव क्रियासिद्धिं कर्त्तुं शक्नोति नेतर इति॥९॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When the sun is on the rise and nature wakes up with the dawn, the holy man of yajna who offers libations into the fire receives all the blessings of divinities from the light of the sun there and then (and communes with nature).
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जर ईश्वराने पदार्थांना निर्माण केले नसते तर कोणताही माणूस कोणत्याही पदार्थाचा उपयोग करू शकला नसता. जेव्हा माणूस निद्रिस्त अवस्थेत असतो तेव्हा तो कोणत्याही प्रकारचे भोग प्राप्त करू शकत नाही; परंतु जागृत अवस्थेत भोग भोगण्यास समर्थ असतो. यामुळे या मंत्रात ‘उषर्बुधः’ या पदाचे उच्चारण केलेले आहे. या जगातील पदार्थांनी बुद्धिमान माणूसच क्रियासिद्धी करू शकतो, इतर नव्हे. ॥ ९ ॥