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इ॒न्द्र॒वा॒यू बृह॒स्पतिं॑ मि॒त्राग्निं॑ पू॒षणं॒ भग॑म्। आ॒दि॒त्यान्मारु॑तं ग॒णम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indravāyū bṛhaspatim mitrāgnim pūṣaṇam bhagam | ādityān mārutaṁ gaṇam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒न्द्र॒वा॒यू इति॑। बृह॒स्पति॑म्। मि॒त्रा। अ॒ग्निम्। पू॒षण॑म्। भग॑म्। आ॒दि॒त्यान्। मारु॑तम्। ग॒णम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:14» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में सब देवों में से कई एक देवों का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (कण्वाः) बुद्धिमान् विद्वान् लोगो ! आप क्रिया तथा आनन्द की सिद्धि के लिये (इन्द्रवायू) बिजुली और पवन (बृहस्पतिम्) बड़े से ब़ड़े पदार्थों के पालनहेतु सूर्य्यलोक (मित्रा) प्राण (अग्निम्) प्रसिद्ध अग्नि (पूषणम्) ओषधियों के समूह के पुष्टि करनेवाले चन्द्रलोक (भगम्) सुखों के प्राप्त करानेवाले चक्रवर्त्ति आदि राज्य के धन (आदित्यान्) बारहों महीने और (मारुतम्) पवनों के (गणम्) समूह को (अहूषत) ग्रहण तथा (गृणन्ति) अच्छी प्रकार जान के संयुक्त करो॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पूर्व मन्त्र से कण्वाः अहूषत और गृणन्ति इन तीन पदों की अनुवृत्ति आती है।जो मनुष्य ईश्वर के रचे हुए उक्त इन्द्र आदि पदार्थों और उनके गुणों को जानकर क्रियाओं में संयुक्त करते हैं, वे आप सुखी होकर सब प्राणियों को सुखयुक्त सदैव करते हैं॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देवालय

पदार्थान्वयभाषाः -  १. पिछले मन्त्र में कहा था कि देवों के साथ (आगहि) - हमें प्राप्त होइए । उन देवों का ही परिगणन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभो  ! आप हमें (इन्द्रवायू) - इन्द्र व वायु को प्राप्त कराइए । आपकी कृपा से हम इन्द्रियों के अधिष्ठाता  , पूर्ण जितेन्द्रिय बन पाएँ । इस जितेन्द्रियता के लिए ही वायु बनें  , [वा गतिगन्धनयोः] गतिशीलता के द्वारा सब वासनाओं का गन्धन वा हिंसन करनेवाले हों । वासना - विनाश के बिना जितेन्द्रियता सम्भव नहीं । वासना - विनाश ही जितेन्द्रियता है ।  २. (बृहस्पतिम्) - आप हमें बृहस्पति को प्राप्त कराइए  , अर्थात् आपका अनुग्रह हमें जितेन्द्रियता व क्रियाशीलता से ऊँचे - से - ऊँचा ज्ञानी बनने का सामर्थ्य दें ।  ३. (मित्राग्निम्) - अब हम मित्र व अग्नि को प्राप्त करें । यह ज्ञान हमें सबके साथ एकत्व का दर्शन कराता हुआ स्नेह करनेवाला [मित्र] बनाये और इस प्रकार उन्नति पर आगे बढानेवाला हो [अग्नि] ।  ४. इस जीवन - यात्रा में आगे बढ़नेवाले हमें आप (पूषणं भगम्) - पूषा व भग को प्राप्त कराइए । हम उचितरूप से अपना पोषण करनेवाले हों । हम शरीर  , मन व बुद्धि का ठीक विकास करनेवाले हों उसके लिए आवश्यक (भगम्) - ऐश्वर्य को उचित मात्रा में संगृहीत कर सकें ।  ५. (आदित्यान्) - आप हमें आदित्यों को प्राप्त कराइए । ये आदित्य [आदानात्] उचित वस्तुओं का आदान करते हुए आगे बढ़ते चलते हैं । हम भी समाज में जिस - जिसके भी सम्पर्क में आयें उस उससे अच्छाइयों को ही ग्रहण करनेवाले हों । बुराई को न देखते हुए हम आगे बढ़ते चलें ।  ६. (मारुतं गणम्) - हम प्राणों के गण को प्राप्त करें । शरीर में भिन्न - भिन्न कर्मों को करनेवाला यह ४९ मरुतों - प्राणों का समूह हमारे इस शरीर गृह को पूर्णरूप से स्वस्थ रखे ।     
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हमारे जीवन में 'इन्द्र  , वायु  , बृहस्पति  , मित्र  , अग्नि  , पूषा  , भग व मरुद्गण' का निवास हो । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विश्वेषां देवानां मध्यात्काँश्चिदुपदिशति।

अन्वय:

हे कण्वा ! भवन्तः क्रियानन्दसिद्धय इन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्रमग्निं पूषणं भगमादित्यान्मारुतं गणमहूषत स्पर्धध्वं गृणीत॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रवायू) इन्द्रश्च वायुश्च तौ विद्युत्पवनौ (बृहस्पतिम्) बृहतां पालनहेतुं सूर्य्यप्रकाशम्। तद्बृहतोः करपत्योश्चोरदेवतयोः सुट् तलोपश्च। (अष्टा०६.१.१५७) अनेन वार्तिकेन बृहस्पतिः सिद्धः। पातेर्डतिः। (उणा०४.५८) अनेन पतिशब्दश्च (मित्रा) मित्रं प्राणम्। अत्र सुपां सुलुग्० इत्यमः स्थान आकारादेशः। (अग्निम्) भौतिकम् (पूषणम्) पुष्ट्यौषध्यादिसमूहप्रापकं चन्द्रलोकम्। पूषेति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.६) अनेन पुष्टिप्राप्त्यर्थश्चन्द्रो गृह्यते। (भगम्) भजते सुखानि येन तच्चक्रवर्त्यादिराज्यधनम्। भग इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) अत्र ‘भज’धातोः पुंसि संज्ञायां घः प्रायेण। (अष्टा०३.३.११८) अनेन घः प्रत्ययः। भगो भजतेः। (निरु०१.७) (आदित्यान्) द्वादशमासान् (मारुतम्) मरुतामिमम् (गणम्) वायुसमूहम्॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र पूर्वस्मान्मन्त्रात् ‘कण्वा अहूषत गृणन्ति’ इति पदत्रयमनुवर्तते।ये मनुष्या एतानिन्द्रादिपदार्थानीश्वररचितान् विदितगुणान् कृत्वा क्रियासु सम्प्रयुज्यन्ते, ते सुखिनो भूत्वा सर्वान् प्राणिनो मृडयन्ति॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Scholars of science and men of wisdom, study and celebrate the nature and powers of Indra, universal energy, Vayu, air, Brhaspati, nourishing and protective light of the sun, Mitra, pranic energy, Agni, heat and light, Pushan, moonlight, Bhaga, socio-economic power and prosperity, Adityas, zodiacs of the sun vis-a-vis the earth and other planets, and Maruts, the currents of wind.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्रातील ‘कण्वो’ ‘अहूषत’ व ‘गृणन्ति’ या तीन पदांची अनुवृत्ती होते. जी माणसे ईश्वराने निर्माण केलेल्या वरील इन्द्र (विद्युत) इत्यादी पदार्थ व त्यांच्या गुणांना जाणून क्रियेमध्ये संयुक्त करतात ते स्वतः सुखी होऊन सर्व प्राण्यांना सदैव सुखी करतात. ॥ ३ ॥