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भ॒द्रा अश्वा॑ ह॒रित॒: सूर्य॑स्य चि॒त्रा एत॑ग्वा अनु॒माद्या॑सः। न॒म॒स्यन्तो॑ दि॒व आ पृ॒ष्ठम॑स्थु॒: परि॒ द्यावा॑पृथि॒वी य॑न्ति स॒द्यः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhadrā aśvā haritaḥ sūryasya citrā etagvā anumādyāsaḥ | namasyanto diva ā pṛṣṭham asthuḥ pari dyāvāpṛthivī yanti sadyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भ॒द्राः। अश्वाः॑। ह॒रितः॑। सूर्य॑स्य। चि॒त्राः। एत॑ऽग्वाः। अ॒नु॒ऽमाद्या॑सः। न॒म॒स्यन्तः॑। दि॒वः। आ। पृ॒ष्ठम्। अ॒स्थुः॒। परि॑। द्यावा॑पृथि॒वी। य॒न्ति॒। स॒द्यः ॥ १.११५.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:115» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सूर्य्य के काम का अगले मन्त्र में वर्णन किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (भद्राः) सुख के करानेहारे (अनुमाद्यासः) आनन्द करने के गुण से प्रशंसा के योग्य (नमस्यन्तः) सत्कार करते हुए विद्वान् जन जो (सूर्य्यस्य) सूर्य्यलोक की (चित्राः) चित्र विचित्र (एतग्वाः) इन प्रत्यक्ष पदार्थों को प्राप्त होती हुई (अश्वाः) बहुत व्याप्त होनेवाली किरणें (हरितः) दिशा और (द्यावापृथिवी) आकाश-भूमि को (सद्यः) शीघ्र (परि, यन्ति) सब ओर से प्राप्त होतीं (दिवः) तथा प्रकाशित करने योग्य पदार्थ के (पृष्ठम्) पिछले भाग पर (आ, अस्थुः) अच्छे प्रकार ठहरती हैं, उनको विद्या से उपकार में लाएँ ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि श्रेष्ठ पढ़ानेवाले शास्त्रवेत्ता विद्वानों को प्राप्त हो, उनका सत्कार कर, उनसे विद्या पढ़, गणित आदि क्रियाओं की चतुराई को ग्रहण कर, सूर्यसम्बन्धी व्यवहारों का अनुष्ठान कर कार्यसिद्धि करें ॥ ३ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सूर्य के अश्व

पदार्थान्वयभाषाः - १. सूर्य की किरणें ही सूर्य के अश्व कहलाते हैं । ये (सूर्यस्य) = सूर्य की (अश्वाः) = सर्वत्र व्याप्त हो जानेवाली किरणें [आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षम्] (भद्राः) = कल्याण करनेवाली हैं , (हरिताः) = ये रोगों का हरण करनेवाली हैं , (चित्राः) = अद्भुत हैं , अथवा चेतना को प्राप्त करानेवाली हैं । (एतग्वाः) = [एतं गच्छन्ति] गन्तव्य मार्ग पर चलानेवाली हैं , (अनुमाद्यासः) = अनुकूलता से हर्ष प्राप्त करानेवाली हैं । २. इन सूर्य - किरणों को (नमस्यन्तः) = पूजित करते हुए पुरुष - इनके उदय होने पर यज्ञ - यागादि में प्रवृत्त होनेवाले पुरुष (दिवः पृष्ठम्) = द्युलोक के पृष्ठ पर (आतस्थुः) = सर्वथा स्थित होते हैं “दिवो नाकस्य पृष्ठात्” - इन वेदशब्दों के अनुसार द्युलोक स्वर्गलोक का पृष्ठ [floor] है , अतः यज्ञादि के द्वारा सूर्य - पूजन करनेवाले लोग स्वर्ग में स्थित होते हैं , अर्थात् सूर्योदय के समय यज्ञादि उत्तम कर्म करनेवाले लोग अपने घरों को स्वर्ग बनाने में समर्थ होते हैं । ३. ये सूर्य के किरणरूप अश्व (सद्यः) = शीघ्र ही (द्यावापृथिवी) = द्युलोक व पृथिवीलोक में (परियन्ति) = चारों ओर जानेवाले होते हैं । सर्वत्र इनका प्रकाश फैल जाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - सूर्य - किरणें कल्याण करनेवाली , नीरोगता देनेवाली व हर्ष की कारणभूत हैं । इनका यज्ञादि के द्वारा स्वागत हमें स्वर्ग - सुख विशेष में स्थित करता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सूर्य्यकृत्यमाह ।

अन्वय:

भद्रा अनुमाद्यासो नमस्यन्तो विद्वांसो जना ये सूर्यस्य चित्रा एतग्वा अश्वाः किरणा हरितो द्यावापृथिवी सद्यः परि यन्ति दिवः पृष्ठमास्थुः समन्तात् तिष्ठन्ति। तान् विद्ययोपकुर्वन्तु ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भद्राः) कल्याणहेतवः (अश्वाः) महान्तो व्यापनशीलाः किरणाः (हरितः) दिशः। हरित इति दिङ्नाम। निघं० १। ६। (सूर्य्यस्य) सवितृलोकस्य (चित्राः) अद्भुता अनेकवर्णाः (एतग्वाः) एतान् प्रत्यक्षान् पदार्थान् गच्छन्तीति (अनुमाद्यासः) अनुमोदकारकगुणेन प्रशंसनीयाः (नमस्यन्तः) सत्कुर्वन्तः (दिवः) प्रकाश्यस्य पदार्थस्य (आ) पृष्ठम् पश्चाद् भागम् (अस्थुः) तिष्ठन्ति (परि) सर्वतः (द्यावापृथिवी) आकाशभूमी (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (सद्यः) शीघ्रम् ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याणां योग्यमस्ति श्रेष्ठानध्यापकानाप्तान् प्राप्य नमस्कृत्य गणितादिक्रियाकौशलतां परिगृह्य सूर्यसम्बन्धिव्यवहारानुष्ठानेन कार्यसिद्धिं कुर्युः ॥ ३ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The blissful rays of the sun, reddish, various and wondrous, exhilarating, invigorating overspread the expanse of heaven and constantly go over the regions of space across the sky and the earth.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी श्रेष्ठ विद्या शिकविणाऱ्या शास्त्रवेत्त्या विद्वानांचा सत्कार करून त्यांच्याकडून विद्या शिकावी. गणित इत्यादी क्रिया चतुराईने ग्रहण कराव्यात. सूर्यासंबंधी व्यवहारांचे अनुष्ठान करून कार्यसिद्धी करावी. ॥ ३ ॥