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क्ष॒त्राय॑ त्वं॒ श्रव॑से त्वं मही॒या इ॒ष्टये॑ त्व॒मर्थ॑मिव त्वमि॒त्यै। विस॑दृशा जीवि॒ताभि॑प्र॒चक्ष॑ उ॒षा अ॑जीग॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṣatrāya tvaṁ śravase tvam mahīyā iṣṭaye tvam artham iva tvam ityai | visadṛśā jīvitābhipracakṣa uṣā ajīgar bhuvanāni viśvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्ष॒त्राय॑। त्व॒म्। श्रव॑से। त्व॒म्। म॒ही॒यै। इ॒ष्टये॑। त्व॒म्। अर्थ॑म्ऽइव। त्व॒म्। इ॒त्यै। विऽस॑दृशा। जी॒वि॒ता। अ॒भि॒ऽप्र॒चक्षे॑। उ॒षाः। अ॒जी॒गः॒। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥ १.११३.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् सभाध्यक्ष राजन् ! जैसे (उषाः) प्रातर्वेला अपने प्रकाश से (विश्वा) सब (भुवनानि) लोकों को (अजीगः) ढाँक लेती है (त्वम्) तू (अभिप्रचक्षे) अच्छे प्रकार शास्त्र-बोध से सिद्ध वाणी आदि व्यवहाररूप (क्षत्राय) राज्य के लिये और (त्वम्) तू (श्रवसे) श्रवण और अन्न के लिये (त्वम्) तू (इष्टये) इष्ट सुख और (महीयै) सत्कार के लिये और (त्वम्) तू (इत्यै) सङ्गति प्राप्ति के लिये (विसदृशा) विविध धर्मयुक्त व्यवहारों के अनुकूल (अर्थमिव) द्रव्यों के समान (जीविता) जीवनादि को सदा सिद्ध किया कर ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्या विनय से प्रकाशमान सत्पुरुष सब समीपस्थ पदार्थों को व्याप्त होकर उनके गुणों के प्रकाश से समस्त अर्थों को सिद्ध करनेवाले होते हैं, वैसे राजादि पुरुष विद्या न्याय और धर्मादि को सब ओर से व्याप्त होकर चक्रवर्त्ती राज्य की यथावत् रक्षा से सब आनन्द को सिद्ध करें ॥ ६ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विसदृश जीवनों का दर्शन

पदार्थान्वयभाषाः - १. यह उषा (त्वम्) = किसी एक के प्रति (क्षत्राय) = बल - सम्पादनरूप कार्य के लिए प्रकट होती है , (त्वम्) = किसी एक के प्रति (श्रवसे) = ज्ञान सम्पादन कार्य के लिए (महीया) = किसी एक के प्रति प्रभुपूजारूप कार्य के लिए [मह पूजायाम्] और (त्वम्) = किसी एक के प्रति (इष्टये) = यज्ञ में प्रवृत्त होने के लिए तथा (त्वम्) = किसी एक के लिए तो (अर्थम् इत्यै इव) = धन के प्रति जाने के लिए ही इसका आविर्भाव होता है । २. वस्तुतः यह उषा (विसदृशा) = भिन्न - भिन्न , विविध (जीविता) = जीवनों को (अभिप्रचक्षे) = प्रकट करने के लिए आती है । इसके आने पर विविध उपायों से लोग अपनी जीविका के सम्पादन में प्रवृत्त होते हैं और (उषा) = यह उषा उन (विश्वा भुवनानि) = सब भुवनों को (अजीगः) = फिर से प्रकट कर देती है , जिन भुवनों को रात्रि के अन्धकार ने निगल - सा लिया था । रात्रि में लोक अति छोटा - सा हो गया था । उषा के होते ही वह अपने विशाल रूप को - धारण करता है और लोग अपने - अपने कार्यों में प्रवृत्त होते हैं । कितने ही विसदृश जीवनों को यह प्रकट करनेवाली है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उषा के प्रकट होते ही क्षत्रिय बल - संचय के कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो ब्राह्मण ज्ञान - अर्जन में , भक्त पूजा में तो कर्मकाण्डी याज्ञिक यज्ञों में । इसी समय वैश्य धन - प्राप्ति के कार्यों में लगते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वन् सभाध्यक्ष राजन् यथोषा स्वप्रकाशेन विश्वाभुवनान्यजीगस्तथा त्वमभिप्रचक्षे क्षत्राय त्वं श्रवसे त्वमिष्टये महीयै त्वमित्यै विसदृशाऽर्थमिव जीविता सदा साध्नुहि ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्षत्राय) राज्याय (त्वम्) (श्रवसे) सकलविद्याश्रवणायान्नाय वा (त्वम्) (महीयै) पूज्यायै नीतये (इष्टये) इष्टरूपायै (त्वम्) (अर्थमिव) द्रव्यवत् (त्वम्) (इत्यै) सङ्गत्यै प्राप्तये वा (विसदृशा) विविधधर्म्यव्यवहारैस्तुल्यानि (जीविता) जीवनानि (अभिप्रचक्षे) अभिगतप्रसिद्धवागादिव्यवहाराय (उषाअजीगर्भु०) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्याविनयेन प्रकाशमानाः सत्पुरुषाः सर्वान् संनिहितान् पदार्थानभिव्याप्य तद्गुणप्रकाशेन सर्वार्थसाधका भवन्ति तथा राजादयो जना विद्यान्यायधर्मादीनभिव्याप्य सार्वभौमराज्यसंरक्षणेन सर्वानन्दं साध्नुयुः ॥ ६ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O dawn, for governance and administration of the social order, for food, energy and national prestige, for honour and grandeur, for reaching the desired goal in life, and for the attainment of the various and versatile ways of life, you shine, wake up and envelop the worlds of existence in light and beauty.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्या व विनय यांनी युक्त असलेले सत्पुरुष सर्व समीप असणाऱ्या पदार्थांत व्याप्त होऊन त्यांच्या गुणांच्या प्रकटीकरणाने संपूर्ण अर्थांना सिद्ध करणारे असतात तसे राजा इत्यादी पुरुषांनी विद्या, न्याय व धर्म इत्यादींना सगळीकडून प्रसृत करून चक्रवर्ती राज्याचे यथावत रक्षण करून सर्वांना आनंदित करावे. ॥ ६ ॥