वांछित मन्त्र चुनें

शश्व॑त्पु॒रोषा व्यु॑वास दे॒व्यथो॑ अ॒द्येदं व्या॑वो म॒घोनी॑। अथो॒ व्यु॑च्छा॒दुत्त॑राँ॒ अनु॒ द्यून॒जरा॒मृता॑ चरति स्व॒धाभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaśvat puroṣā vy uvāsa devy atho adyedaṁ vy āvo maghonī | atho vy ucchād uttarām̐ anu dyūn ajarāmṛtā carati svadhābhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शश्व॑त्। पु॒रा। उ॒षाः। वि। उ॒वा॒स॒। दे॒वी। अथो॒ इति॑। अ॒द्य। इ॒दम्। वि। आ॒वः॒। म॒घोनी॑। अथो॒ इति॑। वि। उ॒च्छा॒त्। उत्ऽत॑रान्। अनु॑। द्यून्। अ॒जरा॑। अ॒मृता॑। च॒र॒ति॒। स्व॒धाभिः॑ ॥ १.११३.१३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:13 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:13


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रीजन ! (पुरा) प्रथम (देवी) अत्यन्त प्रकाशमान (मघोनी) प्रशंसित धन प्राप्ति करनेवाली (अजरा) पूर्ण युवावस्थायुक्त (अमृता) रोगरहित (उषाः) प्रभात वेला के समान (उवास) वास कर और (अथो) इसके अनन्तर जैसे प्रभात वेला (उत्तरान्) आगे आनेवाले (अनु, द्यून्) दिनों के अनुकूल (स्वधाभिः) अपने आप धारण किये हुए पदार्थों के साथ (शश्वत्) निरन्तर (वि, चरति) विचरती और अन्धकार को (वि, उच्छात्) दूर करती तथा (अद्य) वर्त्तमान दिन में (इदम्) इस जगत् की (व्यावः) विविध प्रकार से रक्षा करती है वैसे तू हो ॥ १३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे स्त्रि ! जैसे प्रभात वेला कारण और प्रवाहरूप से नित्य हुई तीनों कालों में प्रकाश करने योग्य पदार्थों का प्रकाश करके वर्त्तमान रहती है, वैसे आत्मपन से नित्यस्वरूप तू तीनों कालों में स्थित सत्य व्यवहारों को विद्या और सुशिक्षा से प्रकाश करके पुत्र, पौत्र ऐश्वर्यादि सौभाग्ययुक्त होके सदा सुखी हो ॥ १३ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

‘अजरा - अमरा’ उषा

पदार्थान्वयभाषाः - १. यह (उषाः) = उषा (पुरा) = पहले (शश्वत्) = सनातनकाल से (व्युवास) = [व्यौच्छत् - सा०] अन्धकार का निवारण करती आयी है । अथ (उ) = अब निश्चय से (देवी) = यह प्रकाशमयी उषा (मघोनी) = ऐश्वर्यवाली होती हुई (अद्य) = आज (इदम्) = इस रात्रि के समय अन्धकारावृत जगत् को (व्यावः) = अन्धकार के आवरण से रहित करनेवाली है । (अथ उ) = और निश्चय से (उत्तरान् द्यून्) = आगे आनेवाले दिनों का अनुलक्ष्य करके (व्युच्छात्) = यह अन्धकार को दूर करेगी ही । २. भूत , वर्तमान , भविष्यत् में अन्धकार को दूर करती हुई यह उषा (अजरा - अमृता) = अजर और अमर है । यह कभी जीर्ण नहीं होती , कभी मृत नहीं होती । वस्तुतः यह अपने स्वागत करनेवाले भक्तों को भी स्वास्थ्य व शान्ति प्रदान करती हुई उन्हें जीर्ण व मृत नहीं होने देती । यह उषा (स्वधाभिः) = अपनी धारण - शक्तियों के साथ (चरति) = निरन्तर गति करती है । इसके साथ सम्बद्ध होकर हम भी इन धारण - शक्तियों के द्वारा अपने जीवन को उत्तमता से धारण करनेवाले होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उषा सनातनकाल से प्रकाश व ऐश्वर्य को प्राप्त करा रही है [देवी , मघोनी] । यह हमें अजर व अमर करे , अपनी धारणशक्तियों से हमारा धारण करे । 
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे स्त्रि त्वं पुरा देवी मघोनी अजरामृतोषा इव उवास अथो यथोषा उत्तराननुद्यूंश्च स्वधाभिः शश्वद्विचरति व्युच्छादद्येदं व्यावस्तथा त्वं भव ॥ १३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शश्वत्) नैरन्तर्य्ये (पुरा) पुरस्तात् (उषाः) (वि) (उवास) वस (देवी) देदीप्यमाना (अथो) आनन्तर्य्ये (अद्य) इदानीम् (इदम्) विश्वम् (वि) (आवः) रक्षति (मघोनि) प्रशस्तधनप्राप्तिनिमित्ता (अथो) (वि) (उच्छात्) विवसेत् (उत्तरान्) आगामिनः (अनु) (द्यून्) दिवसान् (अजरा) वयोहानिरहिता (अमृता) विनाशविरहा (चरति) गच्छति (स्वधाभिः) स्वयं धारितैः पदार्थैः सह ॥ १३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे स्त्रि यथोषा कारणप्रवाहरूपत्वेन नित्या सती त्रिषु कालेषु प्रकाश्यान् पदार्थान् प्रकाश्य वर्त्तते तथाऽऽत्मत्वेन नित्यस्वरूपा त्वं त्रिकालस्थान् सद्व्यवहारान् विद्यासुशिक्षाभ्यां दीपयित्वा सौभाग्यवती भूत्वा सदा सुखिनी भव ॥ १३ ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The bright dawn, ancient and eternal, shines since eternity. Bright and generous mistress of wealth, lights up this world this day and then brightens up the days following till eternity. Unaging and immortal, the dawn moves on and on with its own divine powers and gifts of generosity.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी प्रभात वेळ कारण व प्रवाहरूपाने नित्य असून तिन्ही काळी प्रकाश करण्यायोग्य पदार्थांना प्रकट करीत असते. तशी हे स्त्रिये आत्मीयतेने नित्य स्वरूप तू तिन्ही काळी स्थित राहून सत्य व्यवहार विद्या व सुशिक्षणाने प्रकाश करून पुत्र, पौत्र, ऐश्वर्य इत्यादींनी सौभाग्ययुक्त बनून सदैव सुखी हो. ॥ १३ ॥