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नवा॑ नो अग्न॒ आ भ॑र स्तो॒तृभ्यः॑ सुक्षि॒तीरिषः॑। ते स्या॑म॒ य आ॑नृ॒चुस्त्वादू॑तासो॒ दमे॑दम॒ इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

navā no agna ā bhara stotṛbhyaḥ sukṣitīr iṣaḥ | te syāma ya ānṛcus tvādūtāso dame-dama iṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नवाः॑। नः॒। अ॒ग्ने॒। आ। भ॒र॒। स्तो॒तृऽभ्यः॑। सु॒ऽक्षि॒तीः। इषः॑। ते। स्या॒म॒। ये। आ॒नृ॒चुः। त्वाऽदू॑तासः। दमे॑ऽदमे। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:6» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) राजन् ! (ये) जो (त्वादूतासः) त्वादूतास अर्थात् आप दूत जिनके ऐसे हम लोग आपका (आनृचुः) सत्कार करते हैं उन (नः) हम (स्तोतृभ्यः) धार्मिक विद्वानों के लिये आप (सुक्षितीः) सुन्दर पृथिवी वा मनुष्य विद्यमान जिनमें ऐसे (नवाः) नवीन (इषः) अन्न आदि को (आ, भर) धारण कीजिये जिससे (ते) वे हम लोग उत्साहित (स्याम) होवें और आप (स्तोतृभ्यः) सुपात्र अर्थात् सज्जन विद्वानों के लिये (दमेदमे) घर-घर में (इषम्) उत्तम इच्छा को (आ, भर) धारण कीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - वही राजा प्रशंसनीय होता है, जो उत्तम भृत्य और अतुल ऐश्वर्य्य को सब के सुख के लिये धारण करता है और दूत और चारों अर्थात् गुप्त संदेश देनेवालों से सब राज्य का समाचार जान के यथायोग्य प्रबन्ध करता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ये त्वादूतासो वयं त्वामानृचुस्तेभ्य नः स्तोतृभ्यस्त्वं सुक्षितीर्नवा इष आ भर येन ते वयमुत्साहिताः स्याम त्वं स्तोतृभ्यो दमेदम इषमा भर ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नवाः) नवीनाः (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) राजन् (आ) (भर) (स्तोतृभ्यः) धार्मिकेभ्यो विद्वद्भ्यः (सुक्षितीः) शोभना क्षितयः पृथिव्यो मनुष्या वा यासु ताः (इषः) अन्नाद्याः (ते) (स्याम) (ये) (आनृचुः) अर्चामः (त्वादूतासः) त्वं दूतो येषां ते (दमेदमे) गृहेगृहे (इषम्) उत्तमामिच्छाम् (स्तोतृभ्यः) सुपात्रेभ्यो विपश्चिद्भ्यः (आ) (भर) ॥८॥
भावार्थभाषाः - स एव राजा श्रेयान् भवति य उत्तमान् भृत्यानतुलमैश्वर्यं सर्वसुखाय दधाति दूतचारैः सर्वस्य राजस्य सर्वं समाचारं विदित्वा यथायोग्यं प्रबन्धं करोति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो उत्तम नोकर व अतुल ऐश्वर्य सर्वांच्या सुखासाठी धारण करतो व दूताद्वारे सर्व राज्याचे वर्तमान जाणून यथायोग्य व्यवस्थापन करतो तोच राजा प्रशंसनीय असतो. ॥ ८ ॥