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स यो॑जते अरु॒षा वि॒श्वभो॑जसा॒ स दु॑द्रव॒त्स्वा॑हुतः। सु॒ब्रह्मा॑ य॒ज्ञः सु॒शमी॒ वसू॑नां दे॒वं राधो॒ जना॑नाम् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa yojate aruṣā viśvabhojasā sa dudravat svāhutaḥ | subrahmā yajñaḥ suśamī vasūnāṁ devaṁ rādho janānām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। यो॒ज॒ते॒। अ॒रु॒षा। वि॒श्वऽभो॑जसा। सः। दु॒द्र॒व॒त्। सुऽआ॑हुतः। सु॒ऽब्रह्मा॑। य॒ज्ञः। सु॒ऽशमी॑। वसू॑नाम्। दे॒वम्। राधः॑। जना॑नाम् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:16» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! यदि (सः) वह (स्वाहुतः) सुन्दर प्रकार आह्वान किया हुआ (सः) वह (सुब्रह्मा) सुन्दर अन्न वा धनों से युक्त वा अच्छे प्रकार चारों वेद का ज्ञाता (यज्ञः) सत्कार के योग्य (सुशमी) सुन्दर कर्मोंवाला (वसूनाम्) धनों का (राधः) धन (जनानाम्) मनुष्यों के बीच (देवम्) उत्तम (विश्वभोजसा) विश्व के रक्षक (अरुषा) घोड़ों के तुल्य जल-अग्नि को युक्त करता और (दुद्रवत्) शीघ्र प्राप्त होता हुआ (योजते) युक्त करता है, वह इच्छा सिद्धिवाला होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो राजा प्रजापालन के अर्थ सदा सुस्थिर है, उसको जो दुःख निवारण के लिये बुलावें उनको शीघ्र प्राप्त होकर सुखी करता है, उत्तम आचरणोंवाला विद्वान् होता हुआ प्रतिक्षण प्रजा के हित की इच्छा करता है, वही सब को पूजनीय होता है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यदि स्वाहुतः स सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनां राधो जनानां देवं विश्वभोजसा अरुषा योजयन् दुद्रवत् सन् योजते स सिद्धेच्छो जायते ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (योजते) (अरुषा) अश्वाविव जलाऽग्नी (विश्वभोजसा) विश्वस्य पालकौ (सः) (दुद्रवत्) भृशं गच्छेत् (स्वाहुतः) सुष्ठुकृताह्वानः (सुब्रह्मा) शोभनानि ब्रह्माणि धनाऽन्नानि यस्य यद्वा सुष्ठु चतुर्वेदवित् (यज्ञः) पूजनीयः (सुशमी) शोभनकर्मा (वसूनाम्) धनानाम् (देवम्) दिव्यस्वरूपम् (राधः) धनम् (जनानाम्) मनुष्याणाम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - यो राजा प्रजापालनाय सदा सुस्थिरस्तं ये दुःखनिवारणायाह्वयेयुस्तान् सद्यः प्राप्य सुखिनः करोत्युत्तमाचरणो विद्वान् सन्प्रजाहितं प्रतिक्षणं चिकीर्षति स एव सर्वैः पूजनीयो भवति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा प्रजापालन स्थिरपणे करतो त्याला दुःख निवारण्यासाठी बोलवावे. तेव्हा तो तात्काळ तुम्हाला सुखी करतो. उत्तम आचरण करणारा विद्वान प्रतिक्षणी प्रजेच्या हिताची इच्छा बाळगतो, तो सर्वांना पूजनीय वाटतो. ॥ २ ॥