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इन्द्रा॑विष्णू॒ पिब॑तं॒ मध्वो॑ अ॒स्य सोम॑स्य दस्रा ज॒ठरं॑ पृणेथाम्। आ वा॒मन्धां॑सि मदि॒राण्य॑ग्म॒न्नुप॒ ब्रह्मा॑णि शृणुतं॒ हवं॑ मे ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāviṣṇū pibatam madhvo asya somasya dasrā jaṭharam pṛṇethām | ā vām andhāṁsi madirāṇy agmann upa brahmāṇi śṛṇutaṁ havam me ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑विष्णू॒ इति॑। पिब॑तम्। मध्वः॑। अ॒स्य। सोम॑स्य। द॒स्रा॒। ज॒ठर॑म्। पृ॒णे॒था॒म्। आ। वा॒म्। अन्धां॑सि। म॒दि॒राणि॑। अ॒ग्म॒न्। उप॑। ब्रह्मा॑णि। शृ॒णु॒त॒म्। हव॑म्। मे॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:69» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:13» मन्त्र:7 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशको ! (दस्रा) दुःख के विनाश करनेवालो (वाम्) तुम दोनों को जो (मध्वः) मधुरगुणयुक्त (अस्य) इस (सोमस्य) सोम आदि ओषधियों से उत्पन्न हुए इस रस के (मदिराणि) आनन्द करनेवाले (अन्धांसि) अन्न (अग्मन्) प्राप्त होवें उनको (इन्द्राविष्णू) वायु और बिजुली के समान (पिबतम्) पिओ और उनसे (जठरम्) उदर को (आ, पृणेथाम्) अच्छे प्रकार भरो फिर (मे) मेरे (ब्रह्माणि) पढ़े हुए वेदस्तोत्रों को और (हवम्) नित्य के वेदपाठ को (उप, शृणुतम्) समीप में सुनो ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य औषधों से शरीर के रोगों को तथा विद्या, सत्सङ्ग और धर्म के अनुष्ठान से आत्मा के रोगों को निवार के वायु और बिजुली के समान बलिष्ठ हो विद्याभ्यास करके विद्यार्थियों की परीक्षा करते हैं, वे सब के दुःखों को निवृत्त कर आनन्द दे सकते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ दस्रा ! वां यानि मध्वोऽस्य सोमस्य मदिराण्यधांस्यग्मँस्तानीन्द्राविष्णू इव पिबतं तैर्जठरमा पृणेथां पुनर्मे ब्रह्माणि हवं चोप शृणुतम् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राविष्णू) वायुविद्युताविव (पिबतम्) (मध्वः) मधुरस्य (अस्य) (सोमस्य) सोमाद्योषधिजन्यस्य रसस्य (दस्रा) दुःखक्षयितारौ (जठरम्) उदरम् (पृणेथाम्) प्रपूरयेतम् (आ) (वाम्) युवाम् (अन्धांसि) अन्नानि (मदिराणि) आनन्दकराणि (अग्मन्) प्राप्नुवन्तु (उप) (ब्रह्माणि) पठितानि वेदस्तोत्राणि (शृणुतम्) (हवम्) स्वाध्यायम् (मे) मम ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या औषधैः शरीरस्य रोगान् विद्यासत्सङ्गधर्मानुष्ठानैरात्मनो रोगांश्च निवार्य वायुविद्युद्वद्बलिष्ठा भूत्वा विद्याभ्यासं कृत्वा विद्यार्थिनां परीक्षां कुर्वन्ति ते सर्वेषां दुःखानि निवार्य्याऽऽनन्दं दातुं शक्नुवन्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे औषधींनी शरीराचे रोग, विद्या, सत्संग व धर्माच्या अनुष्ठानाने आत्म्याचे रोग नाहीसे करतात तसे वायू व विद्युतप्रमाणे बलवान होऊन, विद्याभ्यास करून विद्यार्थ्यांची परीक्षा करतात, ती सर्व दुःखांना नाहीसे करून आनंद देऊ शकतात. ॥ ७ ॥