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वर्धा॒द्यं य॒ज्ञ उ॒त सोम॒ इन्द्रं॒ वर्धा॒द्ब्रह्म॒ गिर॑ उ॒क्था च॒ मन्म॑। वर्धाहै॑नमु॒षसो॒ याम॑न्न॒क्तोर्वर्धा॒न्मासाः॑ श॒रदो॒ द्याव॒ इन्द्र॑म् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vardhād yaṁ yajña uta soma indraṁ vardhād brahma gira ukthā ca manma | vardhāhainam uṣaso yāmann aktor vardhān māsāḥ śarado dyāva indram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वर्धा॑त्। यम्। य॒ज्ञः। उ॒त। सोमः॑। इन्द्र॑म्। वर्धा॑त्। ब्रह्म॑। गिरः॑। उ॒क्था। च॒। मन्म॑। वर्ध॑। अह॑। ए॒न॒म्। उ॒षसः॑। याम॑न्। अ॒क्तोः। वर्धा॑न्। मासाः॑। श॒रदः॑। द्यावः॑। इन्द्र॑म् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:38» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्य क्या बढ़ावें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यम्) जिस (इन्द्रम्) बिजुली आदि की विद्या को (यज्ञः) श्रेष्ठों की सङ्गति आदि स्वरूप और (उत) भी (सोमः) प्रेरणा करनेवाला विद्वान् (वर्धात्) बढ़ावे और (ब्रह्म) धन को (वर्धात्) बढ़ावे तथा (उक्था) प्रशंसा करने योग्य वचनों और (मन्म) विज्ञानों और (गिरः) वाणियों को (च) भी (वर्ध) बढ़ावे और (अह) इसके अनन्तर (एनम्) इस (उषसः) प्रभात से और (अक्तोः) रात्रि से (यामन्) चलते हैं जिसमें उस मार्ग में (मासाः) महीने (शरदः) ऋतुएँ और (द्यावः) प्रकाशयुक्त दिन वा प्रकाश (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य को (वर्धान्) बढ़ावें, वे हम लोगों को बढ़ावें ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वानों का सत्कार और सङ्गतिस्वरूप व्यवहार, बिजुली आदि की विद्या को तथा अत्यन्त ऐश्वर्य्य और पूर्ण आयु को बढ़ाता है, वैसे ही आप लोग सम्पूर्ण श्रेष्ठ व्यवहारों को दिनरात्रि बढ़ाइये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः किं वर्धयेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यमिन्द्रं यज्ञ उत सोमो वर्धाद् ब्रह्म वर्धादुक्था मन्म गिरश्च वर्धाहैनमुषसोऽक्तोर्यामन् मासाः शरदो द्यावश्चेन्द्रं वर्धान् तेऽस्मान् वर्धयन्तु ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वर्धात्) वर्धयेत् (यम्) (यज्ञः) सत्सङ्गत्यादिस्वरूपः (उत) अपि (सोमः) प्रेरको विद्वान् (इन्द्रम्) विद्युदादिविद्याम् (वर्धात्) (ब्रह्म) धनम् (गिरः) वाचः (उक्था) प्रशंसनीयानि वचांसि (च) (मन्म) विज्ञानादि (वर्ध) (अह) (एनम्) (उषसः) प्रभातात् (यामन्) यान्ति यस्मिंस्तस्मिन् मार्गे (अक्तोः) रात्रेः (वर्धान्) वर्धयेरन् (मासाः) (शरदः) ऋतवः (द्यावः) प्रकाशयुक्ता दिवसाः प्रकाशा वा (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा विद्वत्सत्कारसङ्गतिमयो व्यवहारो विद्युदादिविद्यां परमैश्वर्य्यं पुष्कलमायुश्च वर्धयति तथैव यूयं सर्वाञ्छुभान् व्यवहारानहर्निशं वर्धयत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसा विद्वानांचा सत्कार व संगतिरूपी व्यवहार, विद्युत इत्यादींची विद्या व अत्यंत ऐश्वर्यपूर्ण आयुष्य वाढविते तसेच तुम्ही संपूर्ण व्यवहार रात्रंदिवस वाढवा. ॥ ४ ॥