आ नो॑ भर॒ व्यञ्ज॑नं॒ गामश्व॑म॒भ्यञ्ज॑नम् । सचा॑ म॒ना हि॑र॒ण्यया॑ ॥
English Transliteration
ā no bhara vyañjanaṁ gām aśvam abhyañjanam | sacā manā hiraṇyayā ||
Pad Path
आ । नः॒ । भ॒र॒ । वि॒ऽअञ्ज॑नम् । गाम् । अश्व॑म् । अ॒भि॒ऽअञ्ज॑नम् । सचा॑ । म॒ना । हि॒र॒ण्यया॑ ॥ ८.७८.२
Rigveda » Mandal:8» Sukta:78» Mantra:2
| Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:31» Mantra:2
| Mandal:8» Anuvak:8» Mantra:2
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - (इन्द्र) हे महाराज ! (त्वेषितः) आपसे सुप्रार्थित (उरुक्रमः) सर्वत्र स्थित (विष्णुः) परमात्मा भी (तान्) उन-उन आवश्यक (विश्वा+इत्) समस्त वस्तुओं को (आ+भरत्) देता है। वह ईश्वर आपके राज्य में (शतम्+महिषान्) अपरिमित भैंस, गौ, अश्व, मेष और हाथी पशु देता है और (क्षीरपाकम्+ओदनम्) दूध में पका भात और (एमुषम्) जलप्रद (वराहम्) मेघ देता है। यह आपकी ही प्रार्थना का फल है, अतः आप धन्य और प्रशंसनीय राजा हैं ॥१०॥
Connotation: - मेघ से घासों और अन्नों की वृद्धि होती है, उनसे पशुओं की और पशुओं से दूध दही आदि की। जिसके राज्य में सदा वर्षा होती है और मनुष्य निरामय सुखी हों, तो समझना कि राजा धर्मात्मा है ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
Word-Meaning: - हे इन्द्र महाराज ! त्वेषितः=त्वया प्रार्थितः। उरुक्रमः=सर्वत्र स्थितः विष्णुः=परमात्मापि। ता=तानि। विश्वा+इत् विश्वान्येव=सर्वाण्येव वस्तूनि। आभरत्= आहरति। तानि कानि। शतं+महिषान्=बहून् पशून्। महिषशब्दो गवादिपशूपलक्षकः। क्षीरपाकमोदनम्। एमुषम्=उदकस्य मोषकम्। वराहम्=मेघम्। इत्यादीनि वस्तूनि संप्रयच्छतीति तवैव प्रार्थनाफलम्। अतस्त्वं धन्योऽसि ॥१०॥