Go To Mantra

वि॒श्व॒दानीं॑ सु॒मन॑सः स्याम॒ पश्ये॑म॒ नु सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम्। तथा॑ कर॒द्वसु॑पति॒र्वसू॑नां दे॒वाँ ओहा॒नोऽव॒साग॑मिष्ठः ॥५॥

English Transliteration

viśvadānīṁ sumanasaḥ syāma paśyema nu sūryam uccarantam | tathā karad vasupatir vasūnāṁ devām̐ ohāno vasāgamiṣṭhaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

वि॒श्व॒ऽदानी॑म्। सु॒ऽमन॑सः। स्या॒म॒। पश्ये॑म। नु। सूर्य॑म्। उ॒च्चर॑न्तम्। तथा॑। क॒र॒त्। वसु॑ऽपतिः। वसू॑नाम्। दे॒वान्। ओहा॑नः। अव॑सा। आऽग॑मिष्ठः ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (अवसा) रक्षा आदि के साथ (आगमिष्ठः) अतीव आने और (वसूनाम्) वसुओं के बीच (वसुपतिः) पदार्थों की पालना करनेवाले और (ओहानः) रक्षक आप जैसे हम लोगों को (देवान्) विद्वान् (करत्) करें (तथा) वैसे हम लोग (विश्वदानीम्) सर्वदा (सूर्य्यम्) सूर्यमण्डल जो (उच्चरन्तम्) ऊपर को चढ़ता है उसे (पश्येम) देखें और (नु) शीघ्र (सुमनसः) प्रसन्नचित्त (स्याम) होवें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे प्रीति से अध्यापक और उपदेशक विद्यार्थियों को और उपदेश सुननेवालों को विद्वान् करके सुखी करते हैं, वैसे ही पढ़नेवालों और उपदेश सुननेवालों को चाहिये कि विद्वान् होकर भी इनका सदा सत्कार करें ॥५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन्नवसाऽऽगमिष्ठो वसूनां वसुपतिरोहानो भवान् यथाऽस्मान् देवान् करत् तथा वयं विश्वदानीं सूर्य्यमुच्चरन्तं पश्येम नु सुमनसः स्याम ॥५॥

Word-Meaning: - (विश्वदानीम्) सर्वदा (सुमनसः) प्रसन्नचित्ताः (स्याम) (पश्येम) (नु) सद्यः (सूर्य्यम्) (उच्चरन्तम्) ऊर्ध्वं प्राप्नुवन्तम् (तथा) (करत्) कुर्यात् (वसुपतिः) वसूनां पदार्थानां पालकः (वसूनाम्) (देवान्) विदुषः (ओहानः) रक्षकः (अवसा) रक्षणादिना (आगमिष्ठः) अतिशयेनाऽऽगन्ता ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा प्रीत्याऽध्यापकोपदेशका विद्यार्थिनः श्रोतॄंश्च विदुषः कृत्वा सुखिनः कुर्वन्ति तथैवाऽध्येतृभिः श्रोतृभिश्च विद्वांसो भूत्वाप्येते सदा सत्करणीयाः ॥५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे अध्यापक व उपदेशक प्रेमाने विद्यार्थ्यांना व उपदेश ऐकणाऱ्यांना विद्वान करून सुखी करतात तसे शिकणाऱ्यांनी व उपदेश ऐकणाऱ्यांनी विद्वान बनून त्यांचा सत्कार करावा. ॥ ५ ॥