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मा व॒ एनो॑ अ॒न्यकृ॑तं भुजेम॒ मा तत्क॑र्म वसवो॒ यच्चय॑ध्वे। विश्व॑स्य॒ हि क्षय॑थ विश्वदेवाः स्व॒यं रि॒पुस्त॒न्वं॑ रीरिषीष्ट ॥७॥

English Transliteration

mā va eno anyakṛtam bhujema mā tat karma vasavo yac cayadhve | viśvasya hi kṣayatha viśvadevāḥ svayaṁ ripus tanvaṁ rīriṣīṣṭa ||

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Pad Path

मा। वः॒। एनः॑। अ॒न्यऽकृ॑तम्। भु॒जे॒म॒। मा। तत्। क॒र्म॒। व॒स॒वः॒। यत्। चय॑ध्वे। विश्व॑स्य। हि। क्षय॑थ। वि॒श्व॒ऽदे॒वाः॒। स्व॒यम्। रि॒पुः। त॒न्व॑म्। रि॒रि॒षी॒ष्ट॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:51» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वसवः) वास के हेतु (विश्वदेवाः) सब विद्वानो ! तुम (विश्वस्य) संसार के बीच (यत्) जो (चयध्वे) इकट्ठा करो और (हि) जिससे जिसको (क्षयथ) निवास करो जैसे (रिपुः) शत्रु (तन्वम्) अपने शरीर को (स्वयम्) आप (रीरिषीष्ट) निरन्तर मारे, वैसे उस (वः) तुम्हारे (अन्यकृतम्) और से किये हुए (एनः) अपराध को हम लोग (मा) मत (भुजेम) भोगें (तत्) उस दुष्ट कर्म को (मा) मत (कर्म) करें ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! तुम किसी दुष्ट का अनुकरण मत करो, अपने शरीर को नष्ट मत करो तथा और के किये हुए अपराध के सङ्ग मत होओ ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे वसवो विश्वदेवा ! यूयं विश्वस्य मध्ये यच्चयध्वे यद्धि क्षयथ यथा रिपुस्तन्वं स्वशरीरं रीरिषीष्ट तथा तद्वोऽन्यकृतमेनो वयं मा भुजेम तद्दुष्टं कर्म मा कर्म ॥७॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (वः) युष्माकम् (एनः) अपराधम् (अन्यकृतम्) अन्येन कृतम् (भुजेम) (मा) (तत्) (कर्म) कुर्य्याम (वसवः) वासहेतवः (यत्) (चयध्वे) संचिनुथे (विश्वस्य) (हि) यतः (क्षयथ) निवसथ (विश्वदेवाः) सर्वे विद्वांसः (स्वयम्) (रिपुः) शत्रुः (तन्वम्) शरीरम् (रीरिषीष्ट) भृशं हिंस्यात् ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यूयं कस्यापि दुष्टस्यानुकरणं मा कुरुत स्वशरीरघातं मा विधत्ताऽन्यकृतस्याऽपराधस्य सङ्गिनो मा भवत ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! तुम्ही कोणत्याही दुष्टाचे अनुकरण करू नका. आपले शरीर नष्ट करू नका व दुसऱ्याच्या अपराधात भागीदार बनू नका. ॥ ७ ॥