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या वः॒ शर्म॑ शशमा॒नाय॒ सन्ति॑ त्रि॒धातू॑नि दा॒शुषे॑ यच्छ॒ताधि॑। अ॒स्मभ्यं॒ तानि॑ मरुतो॒ वि य॑न्त र॒यिं नो॑ धत्त वृषणः सु॒वीर॑म् ॥

English Transliteration

yā vaḥ śarma śaśamānāya santi tridhātūni dāśuṣe yacchatādhi | asmabhyaṁ tāni maruto vi yanta rayiṁ no dhatta vṛṣaṇaḥ suvīram ||

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Pad Path

या। वः॒। शर्म॑। श॒श॒मा॒नाय॑। सन्ति॑। त्रि॒ऽधातू॑नि। दा॒शुषे॑। य॒च्छ॒त॒। अधि॑। अ॒स्मभ्य॑म्। तानि॑। म॒रु॒तः॒। वि। य॒न्त॒। र॒यिम्। नः॒। ध॒त्त॒। वृ॒ष॒णः॒। सु॒ऽवीर॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:85» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उनसे मनुष्यों को क्या-क्या आशा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे सभाध्यक्ष आदि मनुष्यो ! तुम लोग (मरुतः) वायु के समान (वः) तुम्हारे (या) जो (त्रिधातूनि) वात, पित्त, कफयुक्त शरीर अथवा लोहा, सोना, चांदी आदि धातुयुक्त (शर्म) घर (सन्ति) हैं (तानि) उन्हें (शशमानाय) विज्ञानयुक्त (दाशुषे) दाता के लिये (यच्छत) देओ और (अस्मभ्यम्) हमारे लिये भी वैसे घर (वि यन्त) प्राप्त करो। हे (वृषणः) सुख की वृष्टि करनेहारे ! (नः) हमारे लिये (सुवीरम्) उत्तम वीर की प्राप्ति करनेहारे (रयिम्) धन को (अधिधत्त) धारण करो ॥ १२ ॥
Connotation: - सभाध्यक्षादि लोगों को योग्य है कि सुख-दुःख की अवस्था में सब प्राणियों को अपने आत्मा के समान मान के, सुख धनादि से युक्त करके पुत्रवत् पालें और प्रजा सेना के मनुष्यों को योग्य है कि उनका सत्कार पिता के समान करें ॥ १२ ॥ इस सूक्त में वायु के समान सभाध्यक्ष राजा और प्रजा के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्तार्थ की संगति पूर्व सूक्तार्थ के साथ समझनी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तेभ्यो मनुष्यैः किं किमाशंसनीयमित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे सभाद्यध्यक्षादयो मनुष्या ! यूयं मरुत इव वो या त्रिधातूनि शर्म शर्माणि सन्ति तानि शशमानाय दाशुषे यच्छतास्मभ्यं वि यन्त। हे वृष्णो ! नोऽस्मभ्यं सुवीरं रयिमधिधत्त ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (या) यानि (वः) युष्माकम् (शर्म) शर्माणि सुखानि (शशमानाय) विज्ञानवते। शशमान इति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.३) (सन्ति) वर्त्तन्ते (त्रिधातूनि) त्रयो वातपित्तकफा येषु शरीरेषु वाऽयः सुवर्णरजतानि येषु धनेषु तानि (दाशुषे) दानशीलाय (यच्छत) दत्त (अधि) उपरिभावे (अस्मभ्यम्) (तानि) (मरुतः) मरणधर्माणो मनुष्यास्तत्सम्बुद्धौ (वि) (यन्त) प्रयच्छत। अत्र यमधातोर्बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (रयिम्) श्रीसमूहम् (नः) अस्मान् (धत्त) (वृषणः) वर्षन्ति ये तत्सम्बुद्धौ (सुवीरम्) शोभना वीरा यस्मात्तम् ॥ १२ ॥
Connotation: - सभाद्यध्यक्षादिभिः सुखदुःखावस्थायां सर्वान् प्राणिनः स्वात्मवन्मत्वा सुखधनादिभिः पुत्रवत् पालनीयाः। प्रजासेनास्थैः पुरुषैश्चैते पितृवत्सत्कर्त्तव्या इति ॥ १२ ॥ अत्र वायुवत्सभाद्यध्यक्षराजप्रजाधर्मवर्णनादेतदर्थेन सह पूर्वसूक्तार्थस्य सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभाध्यक्ष इत्यादींनी सुखदुःखात सर्व प्राण्यांना आपल्या आत्म्याप्रमाणे मानून सुखी करावे व धन इत्यादीद्वारे पुत्राप्रमाणे पाळावे. प्रजा व सेनेतील माणसांनी त्यांचा पित्याप्रमाणे सत्कार करावा. ॥ १२ ॥