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यश्चि॒द्धि त्वा॑ ब॒हुभ्य॒ आ सु॒तावाँ॑ आ॒विवा॑सति। उ॒ग्रं तत्प॑त्यते शव॒ इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग ॥

English Transliteration

yaś cid dhi tvā bahubhya ā sutāvām̐ āvivāsati | ugraṁ tat patyate śava indro aṅga ||

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Pad Path

यः। चि॒त्। हि। त्वा॒। ब॒हुऽभ्यः॑। आ। सु॒तऽवा॑न्। आ॒ऽविवा॑सति। उ॒ग्रम्। तत्। प॒त्य॒ते॒। शवः॑। इन्द्रः॑। अ॒ङ्ग ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अङ्ग) मित्र ! तू जो (सुतावान्) अन्नादि पदार्थों से युक्त (इन्द्रः) परमैश्वर्य का प्रापक (बहुभ्यः) मनुष्यों से (त्वा) तुझको (आविवासति) सेवा करता है, जो शत्रुओं का (उग्रम्) अत्यन्त (शवः) बल (तत्) उसको (चित्) भी (आपत्यते) प्राप्त होता है (तम्) (हि) उसी को राजा मानो ॥ ९ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो शत्रुओं के बल का हनन करके तुमको दुःखों से हटाकर सुखयुक्त करने को समर्थ हो तथा जिसके भय और पराक्रम से शत्रु नष्ट होते हैं, उसे सेनापति करके आनन्द को प्राप्त होओ ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अङ्ग ! त्वं यः सुतावानिन्द्रो बहुभ्यस्त्वा त्वामाविवासति य उग्रं शवश्चित्तदा पत्यते, तं हि खलु राजानं मन्यस्व ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (यः) (चित्) अपि (हि) खलु (त्वा) त्वाम् (बहुभ्यः) मनुष्येभ्यः (आ) समन्तात् (सुतावान्) प्रशस्तोत्पन्नपदार्थयुक्तः (आविवासति) समन्तात् परिचरति (उग्रम्) उत्कृष्टम् (तत्) (पत्यते) प्राप्यते (शवः) बलम् (इन्द्रः) सभाद्यध्यक्षः (अङ्ग) क्षिप्रकारी सर्वसुहृद् ॥ ९ ॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं यः शत्रूणां बलं हत्वा युष्मान् दुःखेभ्यो वियोज्य सुखिनः कर्त्तुं शक्नोति, यस्य भयपराक्रमाभ्यां शत्रवो निलीयन्ते, तं किल सेनापतिं कृत्वानन्दत ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो शत्रूंच्या शक्तीचे हनन करतो व तुम्हाला दुःखापासून दूर करून सुखी करण्यास समर्थ असतो व ज्याच्या भयाने व पराक्रमाने शत्रू नष्ट होतात त्याला सेनापती करून आनंद मिळवा. ॥ ९ ॥