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त्वम॒ङ्ग प्र शं॑सिषो दे॒वः श॑विष्ठ॒ मर्त्य॑म्। न त्वद॒न्यो म॑घवन्नस्ति मर्डि॒तेन्द्र॒ ब्रवी॑मि ते॒ वचः॑ ॥

English Transliteration

tvam aṅga pra śaṁsiṣo devaḥ śaviṣṭha martyam | na tvad anyo maghavann asti marḍitendra bravīmi te vacaḥ ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ङ्ग। प्र। शं॒सि॒षः॒। दे॒वः। श॒वि॒ष्ठ॒। मर्त्य॑म्। न। त्वत्। अ॒न्यः। म॒घ॒ऽव॒न्। अ॒स्ति॒। म॒र्डि॒ता। इन्द्र॑। ब्रवी॑मि। ते॒। वचः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:19 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर ईश्वर और सभा आदि के अध्यक्षों को कैसे जानें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (अङ्ग) मित्र (शविष्ठ) परम बलयुक्त ! जिससे (त्वम्) तू (देवः) विद्वान् है, उससे (मर्त्यम्) मनुष्य को (प्र शंसिषः) प्रशंसित कर। हे (मघवन्) उत्तम धन के दाता (इन्द्र) दुःखों का नाशक ! जिससे (त्वम्) तुझसे (अन्यः) भिन्न कोई भी (मर्डिता) सुखदायक (नास्ति) नहीं है, उससे (ते) तुझे (वचः) धर्म्मयुक्त वचनों का (ब्रवीमि) उपदेश करता हूँ ॥ १९ ॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि उत्तम कर्म करने, असाधारण सदा सुख देनेहारे धार्मिक मनुष्यों के साथ ही मित्रता करके एक-दूसरे को सुख देने का उपदेश किया करें ॥ १९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरीश्वरसभाद्यध्याक्षौ कीदृशौ जानीयादित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अङ्ग शविष्ठ ! यतस्त्वं देवोऽसि तस्मान् मर्त्यं प्रशंसिषः। हे मघवन्निन्द्र ! यतस्त्वदन्यो मर्डिता सुखप्रदाता नाऽस्ति तस्मात् ते वचो ब्रवीमि ॥ १९ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अङ्ग) मित्र (प्र) (शंसिषः) प्रशंसे (देवः) दिव्यगुणः (शविष्ठ) अतिबलयुक्त (मर्त्यम्) मनुष्यम् (न) निषेधे (त्वत्) (अन्यः) भिन्नः (मघवन्) परमधनप्रापक (अस्ति) (मर्डिता) सुखप्रदाता (इन्द्र) दुःखविदारकं (ब्रवीमि) उपदिशामि (ते) तुभ्यम् (वचः) धर्म्यं वचनम् ॥ १९ ॥
Connotation: - मनुष्यैः प्रशंसितकर्मणानुपमेन सततं सुखप्रदेन धार्मिकेण मनुष्येण सहैव मित्रतां कृत्वा परस्परं हितोपदेशः कर्तव्यः ॥ १९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी प्रशंसित कर्म करण्यासाठी सदैव सुख देणाऱ्या धार्मिक माणसाबरोबर मैत्री करून परस्पर सुख देण्याचा उपदेश करावा. ॥ १९ ॥