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को अ॒ग्निमी॑ट्टे ह॒विषा॑ घृ॒तेन॑ स्रु॒चा य॑जाता ऋ॒तुभि॑र्ध्रु॒वेभिः॑। कस्मै॑ दे॒वा आ व॑हाना॒शु होम॒ को मं॑सते वी॒तिहो॑त्रः सुदे॒वः ॥

English Transliteration

ko agnim īṭṭe haviṣā ghṛtena srucā yajātā ṛtubhir dhruvebhiḥ | kasmai devā ā vahān āśu homa ko maṁsate vītihotraḥ sudevaḥ ||

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Pad Path

कः। अ॒ग्निम्। ई॒ट्टे॒। ह॒विषा॑। घृ॒तेन॑। स्रु॒चा। य॒जा॒तै॒। ऋ॒तुऽभिः॑। ध्रु॒वेभिः॑। कस्मै॑। दे॒वाः। आ। व॒हा॒न्। आ॒शु। होम॑। कः। मं॒स॒ते॒। वी॒तिऽहो॑त्रः। सु॒ऽदे॒वः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:18 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी उक्त विषय का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (कः) कौन (वीतिहोत्रः) विज्ञान और श्रेष्ठ क्रियायुक्त पुरुष (हविषाः) विचार और (घृतेन) घी से (अग्निम्) अग्नि को (ईट्टे) ऐश्वर्य प्राप्ति का हेतु करता है, (कः) कौन (स्रुचा) कर्म से (ध्रुवेभिः) निश्चल (ऋतुभिः) वसन्तादि ऋतुओं में (यजातै) ज्ञान और क्रियायज्ञ को करे, (देवाः) विद्वान् लोग (कस्मै) किसके लिये (होम) ग्रहण वा दान को (आशु) शीघ्र (आवहान्) प्राप्त करावें, कौन (सुदेवः) उत्तम विद्वान् इस सबको (मंसते) जानता है, इस का उत्तर कहिये ॥ १८ ॥
Connotation: - हे विद्वन् ! किस साधन वा कर्म से अग्निविद्या को प्राप्त हों? और किससे क्रियारूप यज्ञ सिद्ध होवे? किस प्रयोजन के लिये विद्वान् लोग यज्ञ का विस्तार करते हैं? ॥ १८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तदेवोपदिश्यते ॥

Anvay:

हे ऋत्विक् ! त्वं को वीतिहोत्रो हविषा घृतेनाऽग्निमीट्टे स्रुचा ध्रुवेभिर्ऋतुभिर्यजाते देवाः कस्मै होमाऽऽश्वावहान् कः सुदेव एतत्सर्वं मंसत इति ब्रूहि ॥ १८ ॥

Word-Meaning: - (कः) (अग्निम्) पावकमाग्नेयाऽस्त्रं वा (ईट्टे) ऐश्वर्यहेतुं विदधाति (हविषा) होतव्येन विज्ञानेन धनादिना वा (घृतेन) आज्येनोदकेन वा (स्रुचा) कर्मणा (यजातै) यजेत (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (ध्रुवेभिः) निश्चलैः कालावयवैः (कस्मै) (देवाः) विद्वांसः (आ) (वहान्) समन्तात् प्राप्नुयुः (आशु) सद्यः (होम) ग्रहणं दानं वा (कः) (मंसते) जानाति (वीतिहोत्रः) प्राप्ताप्तविज्ञानः (सुदेवः) शुभैर्गुणकर्मस्वभावै-र्देदीप्यमानः ॥ १८ ॥
Connotation: - हे विद्वन् ! केन साधनेन कर्मणा वाऽग्निविद्याऽस्मान् प्राप्नुयात्? केन यज्ञः सिध्यते? कस्मै प्रयोजनाय विद्वांसो विज्ञानयज्ञं तन्वते? ॥ १८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वान! कोणत्या साधनाने किंवा कर्माने अग्निविद्या प्राप्त होते? कुणाकडून ज्ञान व क्रियारूपी यज्ञ सिद्ध होतो? कोणत्या प्रयोजनासाठी विद्वान लोक यज्ञाचा विस्तार करतात. ॥ १८ ॥