असा॑वि॒ सोम॑ इन्द्र ते॒ शवि॑ष्ठ धृष्ण॒वा ग॑हि। आ त्वा॑ पृणक्त्विन्द्रि॒यं रजः॒ सूर्यो॒ न र॒श्मिभिः॑ ॥
asāvi soma indra te śaviṣṭha dhṛṣṇav ā gahi | ā tvā pṛṇaktv indriyaṁ rajaḥ sūryo na raśmibhiḥ ||
असा॑वि। सोमः॑। इ॒न्द्र॒। ते॒। शवि॑ष्ठ। धृ॒ष्णो॒ इति॑। आ। ग॒हि॒। आ। त्वा॒। पृ॒ण॒क्तु॒। इ॒न्द्रि॒यम्। रजः॑। सू॒र्यः॑। न। र॒श्मिऽभिः॑ ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब चौरासीवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में सेनापति के गुणों का उपदेश किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सेनाध्यक्षकृत्यमुपदिश्यते ॥
हे धृष्णो शविष्ठेन्द्र ! ते तुभ्यं यः सोमोऽस्माभिरसावि यस्ते तवेन्द्रियं सूर्यो रश्मिभी रजो नेव प्रकाशयेत् तं त्वमागहि समन्तात् प्राप्नुहि स च त्वा त्वामापृणक्तु ॥ १ ॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात सेनापतीचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थ्याची संगती पूर्वसूक्तार्थाबरोबर जाणली पाहिजे. ॥