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य॒ज्ञैरथ॑र्वा प्रथ॒मः प॒थस्त॑ते॒ ततः॒ सूर्यो॑ व्रत॒पा वे॒न आज॑नि। आ गा आ॑जदु॒शना॑ का॒व्यः सचा॑ य॒मस्य॑ जा॒तम॒मृतं॑ यजामहे ॥

English Transliteration

yajñair atharvā prathamaḥ pathas tate tataḥ sūryo vratapā vena ājani | ā gā ājad uśanā kāvyaḥ sacā yamasya jātam amṛtaṁ yajāmahe ||

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Pad Path

य॒ज्ञैः। अथ॑र्वा। प्र॒थ॒मः। प॒थः। त॒ते॒। ततः॑। सूर्यः॑। व्र॒त॒ऽपाः। वे॒नः। आ। अ॒ज॒नि॒। आ। गाः। आ॒ज॒त्। उ॒शना॑। का॒व्यः। सचा॑। य॒मस्य॑। जा॒तम्। अ॒मृत॑म्। य॒जा॒म॒हे॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:83» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किससे किसको प्राप्त होते हैं, यह विषय कहा है ॥

Word-Meaning: - जैसे (प्रथमः) प्रसिद्ध विद्वान् (अथर्वा) हिंसारहित (पथः) सन्मार्ग को (तते) विस्तृत करता है, जैसे (वेनः) बुद्धिमान् (व्रतपाः) सत्य का पालन करनेहारा सब प्रकार (आजनि) प्रसिद्ध होता है, जैसे (ततः) विस्तृत (सूर्यः) सूर्यलोक (गाः) पृथिवी में देशों को (आजत्) धारण करके घुमाता है, जैसे (काव्यः) कवियों में शिक्षा को प्राप्त (उशना) विद्या की कामना करनेवाला विद्वान् विद्याओं को प्राप्त होता है, वैसे हम लोग (यज्ञैः) विद्या के पढ़ने-पढ़ाने सत्संयोगादि क्रियाओं से (यमस्य) सब जगत् के नियन्ता परमेश्वर के (सचा) साथ (जातम्) प्राप्त हुए (अमृतम्) मोक्ष को (आयजामहे) प्राप्त होवें ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि सत्य मार्ग में स्थित होके सत्य क्रिया और विज्ञान से परमेश्वर को जान के मोक्ष की इच्छा करें, वे विद्वान् मुक्ति को प्राप्त होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते केन किं संगच्छन्त इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यथा प्रथमोऽथर्वा पथस्तते यथा वेनो व्रतपा आजनि समन्ताज्जायते यथा ततः सूर्यो गा आजदजति यथा काव्य उशना विद्वान् विद्याः प्राप्नोति तथा वयं यज्ञैर्यमस्य सचा जातममृतमायजामहे ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (यज्ञैः) विद्याविज्ञानप्रचारैः (अथर्वा) अहिंसकः (प्रथमः) प्रख्यातो विद्वान् (पथः) मार्गम् (तते) तनुते। अत्र बहुलं छन्दसीति विकरणस्य लुक्। (ततः) विस्तृतः। अत्र तनिमृङ्भ्यां किच्च। (उणा०३.८६) अनेन तन्प्रत्ययः किच्च। (सूर्यः) यथा सविता तथा (व्रतपाः) सत्यनियमरक्षकः (वेनः) कमनीयः (आ) अभितः (अजनि) जायते (आ) समन्तात् (गाः) पृथिवीः (आजत्) अजत्याकर्षणेन प्रक्षिपति वा (उशना) कामयिता (काव्यः) यथा कवेः पुत्रः शिष्यो वा (सचा) विज्ञानेन (यमस्य) सर्वनियन्तुः (जातम्) प्रसिद्धिगतम् (अमृतम्) अधर्मजन्मदुःखरहितं मोक्षसुखम् (यजामहे) सङ्गच्छामहे ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि मनुष्यैः सन्मार्गे स्थित्वा सत्क्रियाभिर्विज्ञानेन च परमेश्वरं विज्ञाय मोक्षसुखमिष्यते तर्ह्यवश्यं ते मुक्तिमश्नुवते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे सत्य मार्गात स्थित होऊन सत्य क्रिया व विज्ञानाने परमेश्वराला जाणून मोक्षाची इच्छा बाळगतात तेच विद्वान मुक्ती प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥