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रा॒यो धारा॑स्याघृणे॒ वसो॑ रा॒शिर॑जाश्व। धीव॑तोधीवतः॒ सखा॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rāyo dhārāsy āghṛṇe vaso rāśir ajāśva | dhīvato-dhīvataḥ sakhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

रा॒यः। धारा॑। अ॒सि॒। आ॒घृ॒णे॒। वसोः॑। रा॒शिः। अ॒ज॒ऽअ॒श्व॒। धीव॑तःऽधीवतः। सखा॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:55» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन सब को सुख देनेवाला होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अजाश्व) अविनाशी बिजुलीरूप घोड़ेवाले (आघृणे) विद्या से प्रकाशमान विद्वन् ! जिससे आप (वसोः) वास करानेवाले (रायः) धन की (राशिः) ढेरी के समान वा (धारा) प्राप्ति करानेवाली वाणी के समान (धीवतोधीवतः) प्राज्ञ प्राज्ञ के (सखा) मित्र (असि) हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य प्राज्ञ पुरुषों के मित्र, पदार्थविद्याओं के जाननेवाले तथा धनाढ्य हों, वे सबके सुख देनेवाले होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कः सर्वस्य सुखप्रदो भवतीत्याह ॥

अन्वय:

हे अजाश्वाऽऽघृणे विद्वन् ! यतस्त्वं वसो रायो राशिरिव धारेव धीवतोधीवतः सखाऽसि तस्मात् सकर्त्तव्योऽसि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रायः) धनस्य (धारा) प्रापिका वागिव (असि) (आघृणे) विद्यया प्रकाशमान (वसोः) वासयितुः (राशिः) समूहः (अजाश्व) अजोऽनुत्पन्नो विद्युदश्वो यस्य तत्सम्बुद्धौ (धीवतोधीवतः) प्राज्ञस्य प्राज्ञस्य (सखा) ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः प्राज्ञानां सखायः पदार्थविद्याविदो धनाढ्याः स्युस्ते सर्वेषां सुखप्रदा भवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे बुद्धिमान पुरुषांचे मित्र, पदार्थविद्या जाणणारी व धनाढ्य असतील ती सर्वांना सुख देणारी असतात. ॥ ३ ॥